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समिन्द्रे॑णो॒त वा॒युना॑ सु॒त ए॑ति प॒वित्र॒ आ । सं सूर्य॑स्य र॒श्मिभि॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sam indreṇota vāyunā suta eti pavitra ā | saṁ sūryasya raśmibhiḥ ||

पद पाठ

सम् । इन्द्रे॑ण । उ॒त । वा॒युना॑ । सु॒तः । ए॒ति॒ । प॒वित्रे॑ । आ । सम् । सूर्य॑स्य । र॒श्मिऽभिः॑ ॥ ९.६१.८

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:61» मन्त्र:8 | अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:19» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:8


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुतः) सुसंस्कृत कर्मयोगी (सूर्यस्य रश्मिभिः सम्) तैजस पदार्थों के आश्रय से (इन्द्रेण उत वायुना) विद्युत् और से मिलकर (पवित्रे आ समेति) बड़े-बड़े पवित्र कार्यों को सिद्ध करता है ॥८॥
भावार्थभाषाः - कर्म्मयोगी सूक्ष्म से सूक्ष्म पदार्थों की सिद्धि कर लेता है। अर्थात् उससे कोई काम भी अशक्य नहीं। कर्म्मयोगी के सामर्थ्य में समग्र काम हैं। इस बात का वर्णन इस मन्त्र में किया गया है ॥८॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सुतः) सुसंस्कृतः कर्मयोगी (सूर्यस्य रश्मिभिः सम्) तैजसपदार्थाश्रयेण (इन्द्रेण उत वायुना) विद्युत् अन्यैः सम्मिल्य (पवित्रे आ समेति) महापवित्रकार्यसिद्धिं करोति ॥८॥